Sunday, May 24, 2009

Ghalib on visit to Delhi after 15th Lok Sabha elections

हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को गलिब ये खयाल अच्छा है

घर हमारा जो ना रोते भी तो वीरां होता
बहर गर बहर ना होता तो बीयांबां होता

हुआ है शाह का मुसाहिब फिरे है इतराता
वगरना शहर में गालिब की आबरू क्या है


ये ना थी हमारी किस्मत कि विसाल ए यार होता
अगर और जीते रहते यही इन्तज़ार होता


नख्श फरियादी है किसकी शोख ये तहरीर का
कागज़ी है पैरहन हर पैकर ए तस्वीर का


कोई मेरे दिल से पूछे तेरे तीर ए नीमकश को
ये खलिश कहाँ से होती जो जिगर के पार होता


वफा कैसी कहां का इश्क जब सर फोडना ठहरा
तो फिर ऐ संग ए दिल तेरा ही संग ए आस्ताँ क्यों हो


है अब इस मामूरे में कहत-ऍ-ग़म-ऍ-उल्फ़त असद
हमने ये माना कि दिल्ली में रहें खावेंगे क्या


तुम जानो तुम्हे गैर से जो रस्मो राह हो
मुझको भी पूछते रहो तो क्या गुनाह हो
रगों में दौडते फिरने के हम नहीं कायल
जब आँख ही से ना टपका तो फिर लहु क्या है

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